भीमाव्वा डोड्डाबलप्पा शिलेक्याथारा: जब किसी राष्ट्र के सच्चे रक्षक अनजान रह जाते हैं, तब उसकी आत्मा रोती है। लेकिन जब उन्हें पहचान मिलती है, तो वह मुस्कुराती है। भारत को तुम पर गर्व है।
यह एक नई भारत की तस्वीर है, जहाँ सत्ता के सिंहासन से नहीं, बल्कि अनुभव और मेहनत से इतिहास लिखा जाता है।
भीमाव्वा डोड्डाबलप्पा शिलेक्याथारा, 96 वर्षीय तपस्विनी, जिन्होंने कठपुतलियों के माध्यम से रामायण और महाभारत को जीवित रखा, अब मोदी युग में पद्मश्री से सम्मानित हुई हैं।
कठपुतलियों के माध्यम से संस्कृति को जीवित रखने वाली यह महिला, आज देश की आत्मा की प्रतीक बन गई हैं।
2014 से पहले की तस्वीरें क्या आपने 2014 से पहले ऐसी तस्वीरें देखी थीं?
राष्ट्रपति भवन तक एक झुकी हुई पीठ को सहारा देकर लाना केवल सम्मान नहीं है, यह भारत माता के घावों पर मरहम लगाने जैसा है।
कांग्रेस के समय में पुरस्कार अक्सर केवल चमकते चेहरों तक सीमित थे। लेकिन अब, मोदी सरकार में, उन कलाकारों को भी पहचान मिली है जो हमारी संस्कृति को सहेजते हैं।
2014 के बाद, पद्म पुरस्कारों की परंपरा में बदलाव आया है। अब वंचित और उपेक्षित लोगों को भी सम्मानित किया जा रहा है।
भारत की नई आत्मकथा कुछ ऐसे ही रत्नों की सूची:
भीमाव्वा शिलेक्याथारा - टोगलु गोंबेयाटा (चमड़े की कठपुतली) 2024
हिराभाई लखाभाई - दाढ़ी लोक चिकित्सा 2023
करियप्पा हुलीप्पा - बेल्लाल जैविक खेती 2022
राम सैनी - पर्यावरण संरक्षण 2021
डॉ. के. यशवंत - आदिवासी साहित्य 2020
यह नया भारत है, जहाँ पुरस्कार अब सच्चे चरित्रवानों को मिलते हैं।
समापन नहीं, एक नई शुरुआत समाप्ति नहीं, आरंभ:
जब एक झुर्रीदार हाथ पुरस्कार थामता है, तो यह केवल सम्मान नहीं, बल्कि सभ्यता का ऋण चुकाना है।
भारत माता की बेटियों और बेटों को अब मंच मिल रहा है, जो संस्कृति को संकल्प से जीवित रखते हैं।
यह तस्वीरें भारत की आत्मा की पुनर्प्राप्ति का प्रतीक हैं।
जिस दिन भारत ने अपने गुमनाम नायकों को पहचाना, उस दिन से वह फिर से विश्वगुरु बनने की ओर बढ़ा।
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